
आज प्रेस की सेवा करते हुए दिवंगत हुए संवाददाताओं को श्रद्धांजलि देने का दिन
अंतरराष्ट्रीय प्रेस दिवस पर विशेष
पं. विजय कुमार शर्मा
अध्यक्ष, दशपुर प्रेस क्लब मंदसौर
अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस प्रत्येक वर्ष 3 मई को मनाया जाता है । प्रेस किसी भी समाज का आइना होता है । प्रेस की आज़ादी से यह बात साबित होती है कि उस देश में अभिव्यक्ति की कितनी स्वतंत्रता है । भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में प्रेस की स्वतंत्रता एक मौलिक जरूरत है । आज हम एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं, जहाँ अपनी दुनिया से बाहर निकल कर आसपास घटित होने वाली घटनाओं के बारे में जानने का अधिक वक्त हमारे पास नहीं होता । ऐसे में प्रेस और मीडिया हमारे लिए एक खबर वाहक का काम करती हैं, जो हर सवेरे हमारी टेबल पर गरमा गर्म खबरें परोसती हैं। यही खबरें हमें दुनिया से जोड़े रखती हैं। आज प्रेस दुनिया में खबरें पहुंचाने का सबसे बेहतरीन माध्यम है ।
शुरुआत
अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाने का निर्णय वर्ष 1991 में यूनेस्को और संयुक्त राष्ट्र के जन सूचना विभाग ने मिलकर किया था। इससे पहले नामीबिया में विन्डंहॉक में हुए एक सम्मेलन में इस बात पर जोर दिया गया था कि प्रेस की आज़ादी को मुख्य रूप से बहुवाद और जनसंचार की आज़ादी की जरूरत के रूप में देखा जाना चाहिए। तब से हर साल 3 मई को अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है ।
प्रेस की आज़ादी
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भी 3 मई को अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता की घोषणा की थी। यूनेस्को महासम्मेलन के 26वें सत्र में 1993 में इससे संबंधित प्रस्ताव को स्वीकार किया गया था। इस दिन के मनाने का उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता के विभिन्न प्रकार के उल्लघंनों की गंभीरता के बारे में जानकारी देना है, जैसे- प्रकाशनों की कांट-छांट, उन पर जुर्माना लगाना, प्रकाशन को निलंबित कर देना और बंद कर देना आदि । इनके अलावा पत्रकारों, संपादकों और प्रकाशकों को परेशान किया जाता है और उन पर हमले भी किये जाते हैं । यह दिन प्रेस की आज़ादी को बढ़ावा देने और इसके लिए सार्थक पहल करने तथा दुनिया भर में प्रेस की आज़ादी की स्थिति का आंकलन करने का भी दिन है । अधिक व्यवहारिक तरीके से कहा जाए, तो प्रेस की आज़ादी या मीडिया की आज़ादी, विभिन्न इलैक्ट्रॉनिक माध्यमों और प्रकाशित सामग्री तथा फोटोग्राफ वीडियो आदि के जरिए संचार और अभिव्यक्ति की आजादी है । प्रेस की आजादी का मुख्य रूप से यही मतलब है कि शासन की तरफ से इसमें कोई दखलंदाजी न होए लेकिन संवैधानिक तौर पर और अन्य कानूनी प्रावधानों के जरिए भी प्रेस की आजादी की रक्षा जरूरी है ।
मीडिया की आज़ादी का मतलब है कि किसी भी व्यक्ति को अपनी राय कायम करने और सार्वजनिक तौर पर इसे जाहिर करने का अधिकार है । इस आज़ादी में बिना किसी दखलंदाजी के अपनी राय कायम करने तथा किसी भी मीडिया के जरिए चाहे वह देश की सीमाओं से बाहर का मीडिया हो, सूचना और विचार हासिल करने और सूचना देने की आज़ादी शामिल है । इसका उल्लेख मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुछेद 19 में किया गया है। सूचना संचार प्रौद्योगिकी तथा सोशल मीडिया के जरिए थोड़े समय के अंदर अधिक से अधिक लोगों तक सभी तरह की महत्वपूर्ण ख़बरें पहुंच जाती हैं । यह समझना भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि सोशल मीडिया की सक्रियता से इसका विरोध करने वालों को भी स्वयं को संगठित करने के लिए बढ़ावा मिला है और दुनिया भर के युवा लोग अपनी अभिव्यक्ति के लिए और व्यापक रूप से अपने समुदायों की आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति के लिए संघर्ष करने लगे हैं । इसके साथ ही यह समझना भी जरूरी है कि मीडिया की आज़ादी बहुत कमज़ोर है । यह भी जानना जरूरी है कि अभी यह सभी की पहुंच से बाहर है। हालांकि मीडिया की सच्ची आज़ादी के लिए माहौल बन रहा है, लेकिन यह भी ठोस वास्तविकता है कि दुनिया में कई लोग ऐसे हैं, जिनकी पहुंच बुनियादी संचार प्रौद्योगिकी तक नहीं है। जैसे-जैसे इंटरनेट पर ख़बरों और रिपोर्टिंग का सिलसिला बढ़ रहा है, ब्लॉग लेखकों सहित और अधिक इंटरनेट पर पत्रकारों को परेशान किया जा रहा है और हमले किये जा रहे हैं ।
भारत में प्रेस की स्थिति
भारत जैसे विकासशील देशों में मीडिया पर जातिवाद और सम्प्रदायवाद जैसे संकुचित विचारों के खिलाफ संघर्ष करने और गरीबी तथा अन्य सामाजिक बुराईयों के खिलाफ लड़ाई में लोगों की सहायता करने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है, क्योंकि लोगों को एक बहुत बड़ा वर्ग पिछड़ा औन अनभिज्ञ है, इसलिए यह और भी जरूरी है कि आधुनिक विचार उन तक पहुंचाए जाए और उनका पिछड़ापन दूर किया जाए, ताकि वे सजग भारत का हिस्सा बन सकें । इस दृष्टि से मीडिया की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है । भारत में संविधान के अनुच्छेद 19 (1 ए) में भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकारक् का उल्लेख है, लेकिन उसमें शब्द प्रेस का जिक्र नहीं है, किन्तु उपखण्ड (2) के अंतर्गत इस अधिकार पर पाबंदियां लगाई गई है । इसके अनुसार भारत की प्रभुसŸा और अखंडता, राष्ट्र की सुरक्षा, विदेशों के साथ मैत्री संबंधों, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता और नैतिकता के संरक्षण, न्यायालय की अवमानना, बदनामी या अपराध के लिए उकसाने जैसे मामलों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पाबंदियां लगाई जा सकती है ।
सूचना का अधिकार क़ानून
समूचे विश्व में सूचना तक सुलभ पहुंच के बारे में बढ़ती चिंता को देखते हुए भारतीय संसद द्वारा 2005 में पास किया गय सूचना का अधिकार कानून बहुत महत्वपूर्ण हो गया है । इस कानून मे ंसरकारी सूचना के लिए नागरिक के अनुरोध का निश्चित समय के अंदर जवाब देना बहुत जरूरी है । इस कानून के प्रावधानों के अंतर्गत कोई भी नागरिक सार्वजनिक अधिकरण (सरकारी विभाग या राज्य की व्यवस्था) से सूचना के लिए अनुरोध कर सकता है और उसे 30 दिन के अंदर इसका जवाब देना होता है । कानून में यह भी कहा गया है कि सरकारी विभाग व्यापक प्रसारण के लिए अपने आंकड़ों तथा दस्तावेजों का कम्प्यूटरीकरण करेंगे और कुछ विशेष प्रकार की सूचनाओं को प्रकाशित करेंगे, ताकि नागरिकों को औपचारिक रूप से सूचना न मांगनी पड़े । संसद में 15 जून, 2005 को यह कानून पास कर दिया था, जो 13 अक्टूबर, 2005 से पूरी तरह लागू हो गया ।
संक्षेप में, यह कानून प्रत्येक नागरिक को सरकार से सवाल पूछने, या सूचना हासिल करने, किसी सरकारी दस्तावेज की प्रति मांगने, किसी सरकारी दस्तावेज का निरीक्षण करने, सरकार द्वारा किए गए किसी काम का निरीक्षण करने या सरकारी कार्य में इस्तेमाल सामग्री के नमूने लेने का अधिकार देता है । सूचना का अधिकार कानून एक मौलिक मानवाधिकार है, जो मानव विकास के लिए महत्व्पूर्ण है तथा अन्य मानवाधिकारों को समझने के लिए पहली जरूरत है । पिछले 7 वर्षों के अनुभव से, जब से यह कानून लागू हुआ है, पता चलता है कि सूचना का अधिकार कानून आवश्यकता के समय एक मित्र जैसा है, जो आम आदमी के जीवन को आसान और सम्मानजनक बनाता है तथा उसे सफलतापूर्वक जन सेवाओं के लिए अनुरोध करने और इनका उपयोग करने का अधिकार देता है ।
संवाददाताओं को श्रद्धांजलि देने का दिन
अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस प्रेस की स्वतंत्रता का मूल्यांकन, प्रेस की स्वतंत्रता पर बाहरी तत्वों के हमले से बचाव और प्रेस की सेवा करते हुए दिवंगत हुए संवाददाताओं को श्रद्धांजलि देने का दिन है। आज हमारा मीडिया अपना दायित्व ठीक तरीके से नहीं निभा रहा है । कुछ लोगों को छोड़कर श्रद्धांजलि देने का काम भी हमारा मीडिया शायद ही ठीक से कर रहा है । जबकि होना तो ये चाहिए की कम से कम इस दिन तो सारे देश का मीडिया एकजुट होकर इस दिन की सार्थकता को अंजाम देता । कम से कम आज के दिन तो ख़बरों में तड़का लगाने से परहेज करता, किंतु ये भी नहीं होता। ऐसा होने पर टी आर पी पर असर पड़ सकता है, जो की हरगिज बर्दाश्त नहीं है ।
हालांकि प्रेस जहाँ एक तरफ़ जनता का आइना होता है, वहीं दूसरी ओर प्रेस जनता को गुमराह करने में भी सक्षम होता है इसीलिए प्रेस पर नियंत्रण रखने के लिए हर देश में अपने कुछ नियम और संगठन होते हैं, जो प्रेस को एक दायरे में रहकर काम करते रहने की याद दिलाते हैं। प्रेस की आज़ादी को छीनना भी देश की आज़ादी को छीनने की तरह ही होता है। चीन, जापान, जर्मनी, पाकिस्तान जैसे देशों में प्रेस को पूर्णतः आज़ादी नहीं है। यहां की प्रेस पर सरकार का सीधा नियंत्रण है। इस लिहाज से हमारा भारत उनसे ठीक है। आज मीडिया के किसी भी अंग की बात कर लीजिये, हर जगह दाव-पेंच का असर है । खबर से ज्यादा आज खबर देने वाले का महत्व हो चला है। लेख से ज्यादा लेख लिखने वाले का महत्व हो गया है । पक्षपात होना मीडिया में भी कोई बड़ी बात नहीं है, जो लोग मीडिया से जुड़ते हैं, अधिकांश का उद्देश्य जन जागरूकता फैलाना न होकर अपनी धाक जमाना ही अधिक होता हैं ।
कुछ लोग खुद को स्थापित करने के लिए भी मीडिया का रास्ता चुनते है। कुछ लोग चंद पत्र-पत्रिकाओं में लिखकर अपने समाज के प्रति अपने दायित्व की इतिश्री कर लेते है । छदम नाम से भी मीडिया में लोगों के आने का प्रचलन बढ़ा है । सत्य को स्वीकारना इतना आसान नहीं होता है और इसलिए कुछ लोग सत्य उद्घाटित करने वाले से बैर रखते है । लेकिन फिर कुछ लोग मीडिया में अपना सब कुछ दांव पर लगाकर भी इस रास्ते को ही चुनते है और अफसोस की फिर भी उनकी वह पूछ नहीं होती, जिसके की वे हकदार होते है ।