
सायबर सेल उतने प्रभावी नहीं जितने होना चाहिए !
Special Report
मंदसौर, 20 जून । मोबाईल फोन के माध्यम से सायबर अपराध को जन्म देने वाली अनगिनत गैंग मध्यप्रदेश के साथ-साथ पूरे देश मे काम कर रही है और लोगों के साथ लगातार धोखाधड़ी के कार्यों को भी अंजाम दे रही है । मोबाईल फोन के जरिए सायबर अपराध को अंजाम देने वाली कुछ गैंग का भंडाफोड़ जरूर हुआ पर मात्र कुछ गैंग पर नकेल कसने के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि धोखाधड़ी करने वाले तत्वों के दुस्साहस का दमन कब होगा ? क्योंकि देश में ऐसे गिरोहों की गिनती करना मुश्किल है, जो सायबर अपराधों में लिप्त है ।
वैसे केन्द्रीय गृह मंत्रालय और राज्यों के गृह विभाग एवं पुलिस इससे अपरिचित नहीं है कि करीब-करीब हर दिन देश के किसी न किसी हिस्से में कोई न कोई सायबर धोखाधड़ी का शिकार हो ही जाता है ।
सायबर धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज कराने में आती है परेशानी
एक तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि जिस किसी के साथ भी सायबर धोखाधड़ी होती है उसको सायबर धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज कराने में मुश्किल आती है । पहले पुलिस थाने सायबर धोखाधड़ी को सायबर सेल का मामला बताकर पल्ला झाड़ लेती है और बाद में धोखाधड़ी का शिकार हुए व्यक्ति के जले पर नमक छिड़कर उसे उपदेश देना प्रारंभ कर देते है। धोखाधड़ी का शिकार हुआ व्यक्ति त्वरित कार्यवाही होने की धारणा लेकर पुलिस के पास पहुंचता है लेकिन उसे निराशा ही हाथ लगती है और इसी का लाभ सायबर धोखाधड़ी करने वाले उठाते है ।
सायबर क्राईम करने वाले होते है दूसरे प्रदेश से
मध्यप्रदेश में अब तक जितनी भी सायबर ठगी हुई है और सायबर क्राईम के मामले हुए है उसमें करीब-करीब सभी अपराधी अन्य प्रदेश के होते है और विशेषकर बिहार और झारखण्ड से होते है । डिजीटल प्लेटफार्म पर जो लोग ठगी करते है वे पढ़े-लिखे और चालाक भी होते है इसलिए इनकी दी हुई जानकारी झूठी होती है । सायबर सेल आईपी ऐड्रेस या अन्य माध्यमों से इनके राज्य का पता लगा भी लेती है तो उस प्रदेश में इन सायबर अपराधियों को ढूंढना काफी मुश्किल होता है ।
यह किसी से छिपा नहीं है कि देश के कुछ हिस्से सायबर धोखाधड़ी करने वाले तत्वों के गढ़ बन गए है । इनमें से कुछ ग्रामीण इलाके भी है । स्थानीय पुलिस उनके खिलाफ सख्ती नहीं दिखाती, क्योंकि उसके पास कोई शिकायत नहीं होती और दूसरों राज्यों की पुलिस आसानी से वहां पहुंच नहीं पाती । यदि पहुंचती भी है तो उसे पर्याप्त सहयोग नहीं मिलता ।
एडीजी श्री वरूण कपूर की फर्जी आईडी बनाने वाला था नालंदा (बिहार) का
विगत दिनों मध्यप्रदेश के एडीजी श्री वरूण कपूर का फर्जी फेसबुक अकाउंट बना लिया गया था । इसकी सूचना स्वयं एडीजी श्री कपूर ने अपने फेसबुक पर डालकर साझा की थी और अपने मित्रों, शुभचिंतकों को सावधान रहने को कहा था। इसके बाद एडीजी श्री कपूर ने मामले को गंभीरता से लेते हुए उनके नाम और फोटो का दुरूपयोग कर बनाए गए फर्जी फेसबुक अकाउंट को ट्रेस कर आरोपी को नालंदा (बिहार) से गिरफ्तार किया गया था । इसमें फेसबुक ने मदद की तथा यूआरएल, आईपी ऐड्रेस से भी लिंकी मिली।
वहीं विगत दिनों बिहार के एडीजी जितेन्द्र कुमार के भी फोटो का दुरूपयोग कर उनके नाम से भी फर्जी अकाउंट सायबर अपराधियों ने बना लिया था । वहीं डीजीपी झारखंड नीरज सिन्हा भी सायबर अपराधियों के शिकार हो गए थे और उनका भी फेसबुक पर फर्जीअकांउट बनाकर पैसो की मांग की गई थी ।
ऐसे होता है फर्जी फेसबुक अकाउंट ट्रेस
जब भी फेसबुक प्रोफाईल बनता है तो उसका एक यूआरएल जनरेट हो जाता है। इस यूआरएल के आधार पर जांच एजेंसी को फेसबुक के हेड ऑफिस को जानकारी भेजनी होती है। इस यूआरएल पर फेसबुक क्रिएटर लिंक या आईपी डिटेल दे देता है। आईपी डिटेल मिलते ही मेल आईडी या मोबाईल की जानकारी मिल जाती है। जिस कंपनी का नेट न्यूज होता है उसकी जानकारी व आईपी भी यहां से मिलता है। नेट प्रोवाईडर कंपनी की जानकारी के आधार पर संबंधित आईपी ऐड्रेस व नंबर से आरोपी की लोकेशन ट्रेस हो जाती है ।
फर्जी नाम से सिम और मोबाईल खरीदना अब भी आसान
सायबर धोखाधड़ी करना इसलिए आसान बना हुआ है क्योंकि फर्जी या किसी दूसरे के नाम से मोबाईल फोन और सिम खरीदना आज भी आसान बना हुआ है । यह कितना आसान है इसका पता अभी ताजा हुए दो मामलों को देखकर लगाया जा सकता है ।
– अभी हाल ही में एक चीनी नागरिक की पश्चिम बंगाल के मालदा से गिरफ्तारी हुई। चीनी नागरिक हान जुनवे ने भारत से फर्जी दस्तावेज का इस्तेमाल कर अभी तक लगभग 1300 भारतीय सिम खरीदकर चीन भेज दिए थे ।
– वही मप्र की भिण्ड पुलिस ने भी सायबर धोखाधड़ी के एक मामले में एक गिरोह के 5 सदस्यों को गिरफ्तार किया। पकड़े गए लोगों में एक नाईजीरिया का रहने वाला है जबकि चार आरोपी उत्तर प्रदेश के है। नाईजीरिया का जान जुलिओस नाम का यह ठग पिछले चार साल में 2 हजार 169 सिम का उपयोग कर चुका है। आखिर यह कैसे संभव हुआ ?
सायबर सेल उतने प्रभावी नहीं
सायबर धोखाधड़ी ज्यादातर मोबाईल फोन के जरिए हाी होती है। कभी किसी के खाते से पैसे निकाल लिए जाते है, तो कभी छल-कपट से किसी की निजी जानकारी हासिल कर ली जाती है और फिर उसका कई तरह से दुरूपयोग किया जाता है । इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि ऐसे अपराध रोकने के लिए सायबर सेल बने हुए है और शिकायतें दर्ज कराने का तंत्र भी काम कर रहा है, क्योंकि सच्चाई यह है कि सायबर सेल उतने प्रभावी नहीं है जितना उन्हें होना चाहिए ।
सायबर धोखाधड़ी गंभीर चिंता का विषय बनना चाहिए
सायबर धोखाधड़ी करने वाले तत्वों की केवल धरपकड़ पर्याप्त नहीं, क्योंकि बात तो तब बनेगा जब उन्हें समय रहते सा भी दी जा सके। यह ठीक नहीं कि सायबर अपराध में सजा की दर बहुत कम है । एक ऐसे समय में जब डिजिटल लेन-देन और मोबाईल बैंकिंग का चलन बढ़ता जा रहा है तब सायबर धोखाधड़ी करने वालों का बेलगाम होते जाना गंभीर चिंता का विषय बनना चाहिए ।
निःसंदेह भारत सूचना तकनीक के क्षेत्र में एक बड़ी ताकत है लेकिन विडम्बना यह है कि सायबर अपराध के आगे यह ताकत प्रभावी नहीं दिखती । वास्तव में इसी कारण अपने देश में सायबर धोखाधड़ी एक धंधा सा बन गया है ।