
प्रतापगढ़ । शहर के जिला चिकित्सालय में रविवार को आदिवासी दम्पती को मासूूम बेटे की लाश के साथ रात को करीब तीन घंटे तक मुर्दाघर में बंद रहने का मामला सामने आया है। जिला चिकित्सालय प्रशासन ने इस मामले में मोर्चरी कर्मचारी की लापरवाही बताते हुए इसे गम्भीरता से लेते हुए जांच के आदेश दिए है।
अस्पताल प्रशासन के अनुसार शनिवार को जिले के पीपलखूंट थाना क्षेत्र के हरो गांव के रमेश मीणा का दस साल का बेटा छोटू पास में खेत पर खेल रहा था। जो पेड़ से गिरकर घायल हो गया। शाम करीब सात बजे उसके माता-पिता घायलावस्था में उसे प्रतापगढ़ जिला चिकित्सालय लाए और उपचार के लिए भर्ती करवाया। उपचार के दौरान देर रात करीब 3-4 बजे बच्चे की मौत हो गई। इस पर चिकित्सकों ने शव को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी में भिजवा दिया। बच्चे के पिता रमेश मीणा और उसकी पत्नी रकमी भी साथ में मोर्चरी में चले गए। सहायक कर्मचारी भी उनके साथ गया। उसने बच्चे का शव मोर्चरी में रख दम्पती को बाहर जाने को कहा लेकिन बच्चे की मां ने विलाप करते हुए शव को वहां पर छोडऩे से इनकार कर दिया। काफी देर तक समझाइश के बाद भी जब मां नहीं मानी तो सहायक कर्मचारी ने दंपती को अंदर ही बंद कर बाहर से ताला लगा दिया। उसने बाहर आकर अस्पताल प्रशासन और किसी चिकित्सा स्टाफ को इस बारे में जानकारी नहीं दी। सुबह 7 बजे जब अस्पताल प्रशासन को इस बात का पता चला तो आनन-फानन में मोर्चरी का ताला खुलवा कर दंपती को बाहर निकाला। सूचना पर पुलिस भी मौके पर पहुंची लेकिन बाहर निकलते ही दम्पती बिना पोस्टमार्टम करवाए शव को अपने गांव ले गए।
इधर मामला सामने आने पर जिला चिकित्सालय प्रशासन ने इसके लिए सहायक कर्मचारी की लापरवाही बताते हुए उसके खिलाफ कार्रवाई शुरू की है। इस मामले में एक कमेटी का गठन भी कर दिया गया है। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी राधेश्याम कच्छावा का कहना है कि किसी भी जीवित व्यक्ति को इस प्रकार मोर्चरी के अंदर नहीं रखा जा सकता। यदि बच्चे के माता-पिता शव का पोस्टमार्टम नहीं करवाना चाह रहे थे और उसे मोर्चरी में छोडऩे को तैयार नहीं थे तो कर्मचारी को इस सम्बंध में अस्पताल प्रशासन और चिकित्सा स्टाफ को अवगत करवाना चाहिए था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। जो उसकी लापरवाही है। उन्होंने मामले की गंभीरता को देखते हुए कर्मचारी से घटनाक्रम की जानकारी और स्पष्टीकरण मांगा है।