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काश… हम भी ”वैक्सीन”

चारों ओर कोरोना का हाहाकार मचा हुआ था। सभी लोग अपने-अपने तरीके से कोरोना के बचाव में कार्य कर रहे थे, साथ ही अपनी इम्युनीटी बढ़ाने की सारी जद्दोजहद भी चल रही थी । नीरू व उसके परिवार वाले भी सभी तरह के उपाय कर रहे थे, कोरोना को भगाने के लिए ! कभी हवन तो कभी दिन-दिन भर पूजा पाठ उपवास करना। नीरू के सुसराल में सभी लोग अत्यधिक धार्मिक कर्मकांड करने वाले लोग, किंतु कोरोना होने से कुछ ज्यादा ही…. रोज कुछ न कुछ हवन और कुछ कर्मकांड क्रिया चलती रहती थी।

नीरू का मध्यम वर्ग छोटा परिवार था। घर में सास ससुर, ननंद, नीरू के दो बच्चे लड़का दस साल का, लड़की छ: साल की पति रूपेश सभी लोग साथ ही रहते थे। रुपेश प्रायवेट कम्पनी में काम करता था, लॉकडाउन में वर्क फ्रॉम होम चल रहा था किंतु सेलेरी आधी कर दी थी। हालांकि ससुर की पेंशन थी तो ज्यादा परेशानी नहीं हुई लॉकडाउन के दौरान । खैर घर के बाहर तो कोरोना फैल ही रहा था। किंतु नीरू के घर में सभी स्वस्थ्य थे। सभी जगह वैक्सीनेशन भी चल रहा था। फोन पर जब भी दोस्त या रिश्तेदार बात करते तो पहला सवाल उनका यही होता कि वैक्सीन लगवा लिया ? किंतु नीरू के ससुर जी बड़े घमंड के साथ बोलते हमें क्या जरूरत हम तो पूरी तरह सेफ व सुरक्षित है। साथ ही घर से भी नही निकलते है। सभी लोग घर में हवन पूजा पाठ करते है। हमारे साथ तो भगवान है,”हमें क्या कोरोना होगा”? रिश्तेदार बोलते भगवान तो सभी के साथ है फिर भी वैक्सीन तो लगवा ही लो। ससुर जी बोलते देखो भई कई न्यूज चेनल में मंत्री जी भी बोले कि वैक्सीन से लोग मर रहे है और तो और हमारे सामने वाले शर्मा जी वैक्सीन लगवा कर आए और दूसरे दिन उनकी  मृत्यु हो गई।

ससुर जी की ये बाते घर के सभी सदस्य के दिल दिमाग में बैठ गई थी। इसी तरह के विचार घर में सभी लोगों के हो गए थे। ये सुन सुन नीरू के भी यही विचार बन गए। नीरू का स्वभाव मिलनसार होने से सभी रिश्तेदार और दोस्तों के अकसर फोन आते रहते थे। सभी लोग यही पूछते ”वैक्सीन लगवा लिया” ”वेक्सिन लगवा लो” यार कम से कम मां पिताजी को तो लगवा ही दो। नीरू बोली में तो बोलती हूं,पर कई चैनल पर कुछ न कुछ वैक्सीन को लेकर मरने की झूठी अफवाहें साथ ही आस पास वालों की नकारात्मक खबरें सुन कर इनका मन नही करता वैक्सीन लगवाने का। तुम तो लगवा लों। नीरू तपाक से बोली ”अरे मैं तो अभी यंग हूं”। मुझ पर तो वैसे भी कोरोना का असर ज्यादा नही होगा। सर्दी जुकाम की तरह हो कर चला जाएगा। सभी लोगो से नीरू की अधिकतम समय यही बातें होती रहती थी। घर के अंदर सभी का समय अच्छी तरह से गुजर रहा था। पर ”वक्त कब एक जगह ठहरता है”।

कोरोना ने नीरू के घर पर भी दस्तक दे ही दिया। पता ही नही चला दबे पांव कब कोरोना ने घर में अपने पैर पसार लिए। घर के सभी लोग कोरोना पाजिटिव हो गए। सभी को घर में क्वांटाइन कर दिया। कहते है – जब ‘वक्त खराब आता है, तो सब कुछ खराब होता जाता है’। पूरा घर सील कर दिया। फल सब्जिंया सब बंद हो गई । बाहर से टिफिन आने लगा। छोटे-छोटे बच्चे भी अपनी मां-पिताजी दादा-दादी से ही, दूर हो गए। कोई किसी को हाथ तक नही लगा सकता था। हालांकि इलाज से सभी लोग धीर धीरे ठीक हो रहे थे। किंतु नीरू की तबीयत ठीक होने की बजाय और अधिक खराब होती जा रही थी। डॉक्टर ने कोरोना वार्ड में एडमिट कर लिया। नीरू की हालत दिनों दिन नाजुक हो रही थी, उसको अब ऑक्सिजन भी लगाना पड़ रहा था। नीरू अकेले ही कोरोना से संघर्ष कर रही थी। वह पूरी तरह निष्क्रीय होती जा रही थी। किंतु उसका अचेतन मन सक्रीय था। अब नीरू को रूपेश के स्पर्श की लालसा हो रही थी। ”काश रूपेश मेरे सर को अपनी गोद में रखते”मेरा सर सहलाते मुझसे बोलते तुम जल्दी ठीक हो जाओगी ! मेरे बच्चे मेरे हाथों को उनके छोटे छोटे हाथों में लेकर मुझसे बातें करते। मेरी माँ मुझे जल्दी ठीक होने की सांत्वना देती। लेकिन मैं किस खतरनाक बीमारी से ग्रस्त हो गई हूं, कि कोई मेरे पास भी नही आ सकता है। अगर ‘मैं मर भी जाउंगी’ तो भी मेरे पति या कोई भी सदस्य अंतिम समय में भी मेरे पास नही होगा। अब नीरू को  समझ आ रहा था, कि काश हम सब भी वैक्सीन लगवा लेते तो अच्छा होता। हमारे घर की ऐसी स्थिति नही होती। ”मैं मौत के मुंह में नही जाती”। अब तो भगवान ही चमत्कार कर सकता है, नीरू का अचेतन मन रह रह कर यही बात सोच रहा था, ”काश……..हम भी वैक्सीन”

वैदेही कोठारी, (स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखिका),
48 राजस्व कॉलोनी रतलाम (मप्र)

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