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बच्चों का मोबाइल प्रेम जोखिमपूर्ण, मोबाइल सिर्फ बच्चों की जरूरत रहे, लत न बने

फेसबुक पर छलका सामाजिक कार्यकर्ता टीना सोनी का दर्द,
लिखा–लोटखेडी की घटना से सबक लें परिजन

मंदसौर, 07 जनवरी । मोबाइल का नशा बच्चों को चिड़चिड़ा बनाकर उनके व्यवहार में बदलाव ला रहा है। चिड़चिड़ेपन के साथ ही बच्चों में नींद की कमी, बेचैनी, खाने के समय में बदलाव से पाचन शक्ति भी कमजोर हो रही है। इन सबसे अधिक गंभीर विषय यह है कि मोबाइल के अधिक स्तेमाल से बच्चे क्रूर और खतरनाक होते जा रहे है। नेहरू युवा केंद्र की युवा स्वयंसेवक एवं बाल अधिकार कार्यकर्ता टीना सोनी (सुवासरा) ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा कि लोटखेडी की घटना से परिजनों को सबक लेने की जरूरत है।

Tina Soni

कोविड महामारी ने विश्वभर की व्यवस्थाओं को झकझोर कर रख दिया है। आपदा ने लोगों की जीवनशैली को काफी हद तक प्रभावित किया है। मजदूर वर्ग रोजगार हीन हो गया। बच्चे शिक्षा से बंचित हो रहे है। स्कूल कब सामान्य रूप में खुलेंगे यह दूर तक नजर नहीं आ रहा और जो शिक्षा के साधनों में बदलाव आया है, वह ऑॅनलाइन शिक्षा व्यवस्था बच्चों के लिए तनाव का कारण बनती जा रही है। बच्चे मोबाइल एडिक्शन के कारण डिप्रेशन के शिकार होते जा रहे है। जिसके घातक परिणाम भी दिखाई देने लगे है।

टीना के अनुसार घर से बाहर नहीं निकलने से बच्चों के व्यवहार में बदलाव आ रहा है, उनमें अनेक मानसिक समस्याएं पैदा हो रहीं है। ऑॅनलाइन होना बक्त की जरूरत है, लेकिन उसके दायरे खींचना भी जरूरी है।  माता-पिता को अतिरिक्त सावधानी रखने की आवश्यकता है कि बच्चे का बचपन कहीं इस धुंध में खो न जाए। इस बात का ध्यान रखना होगा कि मोबाइल सिर्फ उनकी जरूरत रहे, लत न बने। बच्चे मोबाइल का उपयोग जरूरत के लिये ही करें, गैर जरूरी एप्स के उपयोग एवं सर्चिंग पर नजर रखने की बेहद आवश्यकता है।

बचपन के लिये जोखिम बना मोबाइल- इंटरनेट

टीना सोनी ने सोमवार को भानपुरा के लोटखेड़ी गांव में पब्जी गेम के चक्कर में बच्चे की आत्महत्या के मामले से परिजनों को सजग रहने का सुझाव दिया। उन्होंने बच्चों पर मोबाइल और इंटरनेट के दुष्प्रभाव के कुछ उदाहरण भी बताए कि कैसे बचपन की कोमलता क्रूरता में तब्दील होती जा रही है।

केस नंबर-1

 ग्वालियर निवासी एक पिता ने जब बच्चे को मोबाइल फोन चलाने से मना किया तो 14 वर्षीय पुत्र ने फांसी लगाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली।

केस नंबर-2

हाल ही में ग्रेटर नोएडा में एक 16 वर्षीय लड़के ने अपनी मां और बहन की हत्या कर दी क्योंकि बहन ने शिकायत कर दी थी कि भाई दिन भर मोबाइल फोन पर खतरनाक गेम खेलता रहता है, इसलिए मां ने बेटे की पिटाई की, उसे डांटा और उसका मोबाइल फोन ले लिया। मोबाइल पर मारधाड़ वाले गेम खेलते रहने के आदी लड़के का गुस्सा इससे बढ़ गया और उसने अपनी मां और बहन की हत्या कर दी और घर से भाग गया।

केस नंबर-3

 पब्जी गेम के चेलेंज पूरे करने के चक्कर में अनेकों बच्चों ने आत्महत्या तक कर ली है। कई बच्चों की आंखों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, बच्चों की दृष्टि कमजोर हुई और कई बच्चे भोंगेपन के शिकार भी हुए।

केस नंबर-4

भिंड जिले के मेहगांव निवासी एक किशोर ने अपने स्कूल टीचर की डांट का बदला लेने के लिये यूटयूब पर बम बनाने की तकनीक सीखी और नकली बम बनाकर स्कूल में रख दिया, जिससे क्षेत्र में अशांति का माहौल बना और पुलिस प्रशासन को अनावश्यक परेशानियों का सामना करना पड़ा।

केस नंबर-5

मोबाइल में सोशल मीडिया पर सगे भाई- बहन ने अश्लील वीडियो देखा फिर भाई-बहन का रिश्ता शर्मसार हुआ। मोबाइल और इंटरनेट से यौन शोषण की घटनाओं को बढ़ावा मिला है।

एक हकीकत यह भी है

यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार महामारी ने देशभर में 2.5 करोड़ से अधिक बच्चों की शिक्षा को प्रभावित किया है। केवल 15 फीसदी ग्रामीण परिवारों के पास इंटरनेट है। डिजिटल रूप से शिक्षा तक पहुंच न होने की लाचारी के कारण छात्र आत्महत्या के भी मामले सामने आ चुके है। ऑॅक्सफैम द्वारा किए गए एक आंकलन में सामने आया है कि 75 फीसदी सरकारी स्कूल के छात्रों के माता- पिता अपने बच्चों को डिजिटल रूप से दी जाने वाली शिक्षा तक पहुंच बनाने के लिए संघर्ष करते है।

ऑॅनलाइन कक्षाओं के आगमन के साथ, गोपनीयता का हनन, साइबर अपराध और दुरूपयोग के नए मुद्दे सामने आए है। अनाधिकृत लोगों के ऑॅनलाइन कक्षाओं में प्रवेश करने, छात्राओं की तस्वीरें लेने के अलावा गोपनीयता संबंधी चिंताओं को सामने लाने के अलावा सीखने के प्लेटफार्मों पर अनुचित सामग्री अपलोड करने के कई उदाहरण सामने आए है ।

कैसे छुड़ाएं मोबाइल की आदत

बच्चों को डांटने के बजाय उन्हें मोबाइल से दूर करने के लिये उन्हें आउटडोर- इनडोर गतिविधियों से जोड़ें। उन्हें मोबाइल से दूर रखने के लिये उन्हें दूसरे कार्यों र्में व्यस्त रखने के प्रयास करें। मोबाइल में बच्चों की उम्र के अनुपात से ही एप्लिकेशन के उपयोग की सलाह दें। समय- समय पर जांच करें कि बच्चे मोबाइल में क्या देख रहे है, क्या चला रहे है। जरूरत पड़ने पर उन्हें मनो-सामाजिक विशेषज्ञों से परामर्श लिया जा सकता है। चाइल्ड लाइन नंबर 1098 अथवा शिक्षा विभाग की उमंग हेल्पलाइन 14425 पर संपर्क किया जा सकता है।

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