
गला काट प्रतिस्पर्धा के इस दौर में बाजार में टिके रहने के लिए कंपनियां विपणन नीति का सहारा ले रही हैं। इससे दवा कंपनियां भी अछूती नहीं हैं। भूमंडलीकरण ने इस प्रतिस्पर्धा को और बढ़ा दिया है। जैसे−जैसे मल्टी नेशनल कंपनियां भारतीय दवा बाजार में पैर फैला रही हैं वैसे−वैसे हर कंपनी आक्रामक विपणन नीति का सहारा ले रही है। इसके लिए दवा कंपनियां मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव की नियुक्ति करती हैं जो चिकित्सक, दवा कंपनियों और उनके ग्राहकों के बीच की बहुत ही महत्वपूर्ण कड़ी है। इनके बिना कोई भी कंपनी अपना व्यवसाय फैला नहीं सकती। लिहाजा इस क्षेत्र में भी रोजगार के बेहतर अवसर खुल रहे हैं।
मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव के क्षेत्र में कॅरियर बनाने के इच्छुक अभ्यार्थी को विज्ञान स्नातक होना आवश्यक है। लेकिन फार्मेसी में डिग्री और डिप्लोमाधारी अभ्यर्थी को सभी दवा कंपनी प्राथमिकता देती हैं। हालांकि इस क्षेत्र में सफलता हासिल करने के लिए डिग्री से ज्यादा धैर्य, लगन तथा वाकपटुता की जरूरत होती है। इसके साथ ही आकर्षक व्यक्तित्व, बातचीत से दूसरे को प्रभावित करने की क्षमता और सकारात्मक सोच का होना भी जरूरी है।
एक मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव यानी एमआर का काम मेडिकल व्यवसाय से जुड़े, व्यवसायियों, चिकित्सकों से संपर्क कर अपनी कंपनी द्वारा उत्पादित दवाओं की गुणवत्ता बताना होता है। उन्हें इस तरह समझाना होता है कि चिकित्सक रोगियों को उन्हीं की कंपनी की दवा लिखे। एक एमआर को अपनी कंपनी की उत्पादित तमाम दवाओं की जानकारी रखना होता है और चिकित्सकों और व्यवसायियों को बताना होता है। यानी वह कंपनी और व्यवसायियों के बीच एक पुल का काम करता है। एक तरह से उसके कंधे पर कंपनी की सफलता की पूरा दारोमदार टिका हुआ है।
एक एमआर को वेतन उसकी योग्यता और कंपनी के स्तर के आधार पर मिलता है। शुरुआत में एक एमआर को 5 से लेकर 15 हजार रुपए तक मिलते हैं। इसके अलावा वाहन, यात्रा भत्ता, हाउसिंग और सुविधाएं अलग से मिलती हैं।